
बहुत समय पहले की बात है। एक व्यक्ति किसी गांव में रहता था। लोग कहते थे कि उसे गुस्सा नहीं आता था। इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें सिर्फ फिजूल की बातें ही सूझती हैं। ऐसे ही व्यक्तियों में से किसी एक ने निश्चय किया कि उस गुस्सा न आने वाले सज्जन को गुस्सा दिलाया जाए।
और वह इस काम में लग गया। उसने कई लोगों की एक टोली बना ली और उस सज्जन के नौकर से कहा, देखो भाई, यदि तुम अपने स्वामी को गुस्सा दिला दो, तो तुम्हें पुरस्कार दिया जायेगा।
नौकर तैयार हो गया। वह जानता था कि उसके स्वामी को सिकुडा हुआ बिस्तर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है। अत: उसने उस रात में बिस्तर ठीक ही नहीं किया।
सुबह होने पर स्वामी ने नौकर से केवल इतना कहा, 'कल बिस्तर ठीक था।'
सेवक ने बहाना बना दिया और कहा, 'मैं ठीक करना भूल गया था।' इस तरह दूसरे, तीसरे और चौथे दिन भी बिस्तर ठीक नहीं बिछाया।
तब स्वामी ने नौकर से कहा, लगता है कि तुम बिस्तर ठीक करने के काम से ऊब गये हो और चाहते हो कि मेरा यह स्वभाव छूट जाए। कोई बात नहीं। अब मुझे सिकुडे हुए बिस्तर पर सोने की आदत पडती जा रही है। इस तरह नौकर ने ही नहीं बल्कि उन धूर्तों व्यक्तियों ने उस व्यक्ति को गुस्सा दिलाने से हार मान ली।
संक्षेप में
अगर आप गुस्सा नहीं करेंगे तो आपको गुस्सा कभी नहीं आ सकता। कहत भी हैं कि अगर किसी ने आपको गु्स्सा दिला दिया यानी उसने आपको हरा दिया। इसलिए गुस्सा छोड़िए, खुशी से रहिए।