यूरिनरी ट्रैक्ट कैंसर होने पर यूरिन से खून आने लगता है। लेकिन यह यूरिनरी ट्रैक्ट कैंसर है या नहीं, इसकी पुष्टि जांच के बाद होती है। समय पर इलाज न होने से जान भी जा सकती है।
आज तमाम कैंसर में यूरिनरी ट्रैक्ट कैंसर भी एक घातक बीमारी में से एक मानी जा रही है। दुनियाभर के कैंसर विशेषज्ञों की मानें, तो यूरिनरी कैंसर होने का सबसे बड़ा कारण तंबाकू उत्पादों का सेवन ही है। हमारे देश में तंबाकू का सेवन मुख्यतः तीन प्रकार से किया जाता है। एक खैनी या जर्दा के रूप में सीधे तंबाकू चबाना, दूसरा गुटखा व पान के जरिए मिश्रित तंबाकू चबाना और तीसरा बीड़ी-सिगरेट के रूप में तंबाकू सुलगाकर पीना।
अकेले तंबाकू के सेवन से मुंह, गले, कंठ, फेफड़े, किडनी, यूरिनरी, ब्लैडर समेत लगभग 14 प्रकार के कैंसर होने खतरा रहता है। अगर शुरू में ही कैंसर की पहचान हो जाए, तो इसका इलाज संभव है। लेकिन इलाज में देरी होने पर यह जानलेवा साबित होता है। तंबाकू के सेवन से सिर्फ कैंसर ही नहीं, इससे फेफड़े, हृदय और गले से जुड़े दूसरे रोग भी हो सकते हैं, जो जानलेवा होते हैं।
अमूमन तंबाकू का सेवन करने वाले और पेंट उद्योग से जुड़े लोग कैंसर का अधिक शिकार होते हैं। कैंसर होने के दूसरे कारण भी होते हैं, लेकिन तंबाकू की अपेक्षा में अन्य कारणों का प्रतिशत कम ही रहता है। यूरिनरी ट्रैक्ट (पेशाब मार्ग) कैंसर किडनी, यूरेटर और ब्लैडर में कहीं भी हो सकता है।
क्या हैं लक्षण
अगर मूत्र में खून या खून के थक्के आने लगे, तो इसका कारण मूत्र की थैली में कैंसर हो सकता है। यह कैंसर मूत्र की थैली के सेल में होता है। कैंसर के इस घाव से लगातार खून का रिसाव होता है।
जब यह खून अधिक मात्रा में पेशाब की थैली में जमा हो जाता है, तो पेशाब आना भी बंद हो जाता है। ऐसी स्थिति में मरीज को तुरंत इलाज की जरूरत होती है। वैसे कई बार इंफेक्शन और पथरी के कारण भी मूत्र से खून आता है। इसलिए जांच के बाद ही कैंसर या किसी अन्य बीमारी की पुष्टि की जा सकती है।
उपचार
सबसे पहले मरीज का अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन और यूरिन टेस्ट किया जाता है। अगर इन रिपोर्ट में कैंसर की पुष्टि हो जाती है, तो इसके बाद कैंसर के ट्यूमर के आकार की जांच की जाती है। अगर यह ट्यूमर अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, तो पेशाब के रास्ते दूरबीन डालकर एक खास चिकित्सक यंत्र से कैंसर के हिस्से को काट कर बाहर निकाल दिया जाता है।
कई बार जब ट्यूमर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, तो मरीज की मूत्र की थैली को ही बाहर निकाल दिया जाता है। ऐसे में मरीज की आंत का एक हिस्सा निकाल कर उसे यूरिन थैली की जगह लगाया जाता है और फिर एक खास प्रकार की कैन मरीज के शरीर के बाहर लगाई जाती है, जिसमें मूत्र इकट्ठा होता रहता है।
समय-समय पर मरीज को इस कैन को खाली करने की आवश्यकता पड़ती है। ट्यूमर बाहर निकालने में नियमित अंतराल पर मरीज के दो बार टेस्ट किए जाते हैं। इस टेस्ट में डॉक्टर यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि शरीर में कैंसर फिर से तो नहीं पनप रहा है।
इलाज सही समय पर शुरू न होने के कारण कभी-कभी यह कैंसर मेटास्टैटिक स्टेज में पहुंच जाता है। इसमें यह कैंसर फैलता हुआ शरीर के दूसरे अंगों जैसे लीवर, फेफड़े और लिंफोसिस में फैल कर इन अंगों को भी प्रभावित करने लगता है।
इसमें मरीज को कीमोथेरेपी, रेडियोलॉजी से इलाज किया जाता है। लेकिन मेटास्टेज में मरीज का बच पाना मुश्किल होता है।
अमूमन यूरिनरी ट्रैक्ट कैंसर 40 से अधिक साल के उम्र वाले लोगों को होता है, लेकिन कुछ मामलों में यह 20-25 साल के नौजवानों में भी देखने को मिल रहा है।
अभी तक के प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को यह कैंसर होने का खतरा ज्यादा होता है। यह अनुपात 30:70 का है।
अगर मरीज कैंसर के साथ-साथ शुगर, बीपी, हार्ट पेशेंट या उम्रदराज है, तो उसकी सर्जरी नहीं की जाती, क्योंकि ऐसे मरीज लगातार चार-पांच घंटे का ऑपरेशन नहीं सह सकते।
ऐसे में उनका कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से इलाज किया जाता है। इस थेरेपी में एक्स-किरणों के माध्यम से कैंसर सेल्स को खत्म कर दिया जाता है।