फ्लिपकार्ट और स्नैपडील पे डिस्काउंट खत्म होने के chances

भारत में पिछले कुछ समय से ई-रिटेलिंग सेक्टर में काफी उछाल आया है। ई-रिटेलिंग, जिसमें कि अॉनलाइन रिटेल और अॉनलाइन मार्केटप्लेस शामिल हैं, के सालाना विकास दर में साल 2009 से साल 2014 के बीच तकरीबन 56 फीसदी का इजाफा हुआ है। 

मल्टिनैशनल प्रफेशनल सर्विसेज नेटवर्क प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (पीडब्ल्यूसी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक ई-रिटेलिंग का वर्तमान बाजार करीब 6 बिलियन डॉलर ((करीब 37,363 करोड़ रुपये)) के आसपास पहुंच गया है।

हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकत है कि फ्लिपकार्ट और स्नैपडील जैसे अॉनलाइन रिटेलरों द्वारा दी जाने वाली डिस्काउंट से इस क्षेत्र को सबसे ज्यादा मदद मिली है। ।

पीडब्ल्यूसी के एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि आधे से ज्यादा ग्राहक इन्हीं डिस्काउंट्स के कारण खरीदारी करने आते हैं। कंपनी द्वारा दी जाने वाली छूट के कारण ग्राहक ई-रिटेलिंग की तरफ आर्कषित होते हैं।

ऐसे ग्राहकों के लिए बुरी खबर यह है कि ई-रिटेलर्स आने वाले दिनों में छूट और डिस्काउंट संबंधी अपनी नीतियों में तब्दीली लाने का मन बना रहे हैं। फ्लिपकार्ट के एक सीनियर अधिकारी ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि कंपनी जल्द ही इस किस्म के डिस्काउंट देना बंद करने वाली है।

डिस्काउंट बंद करने के फैसले के पीछे की वजहें क्या हैं?

बढ़ता आर्थिक घाटा
पीडब्लयूसी की एक रिर्पोट के अनुसार अगर हम डिस्सकाउंट की पेशकश करने के कारण होने वाले सभी ई-टेलिंग कंपनियों के कुल घाटे को एक साथ मिला दें तो घाटे की रकम करीब 1000 करोड़ तक पहुंच जाएगी। अर्नेस्ट ऐंड यंग के सीनियर अधिकारी पिनाकी रंजन मिश्रा ने कहा कि इस तरह के फैसलों के साथ कोई भी लंबे समय तक बिजनस चलाने की नहीं सोच सकता। घाटे के साथ आखिर कोई कितने दिन तक बाजार में टिक सकता है। उन्होंने कहा कि बाजार में लंबे समय तक टिकने के लिए कंपनी का लाभ कमाना बेहद जरूरी है।

मुनाफा कमाने का दवाब
घाटे के बावजूद कई ई-रिटेलर्स निवेशकों की मदद से अपने ग्राहकों को डिस्काउंट और विशेष छूट जैसी पेशकश देते हैं। पीडब्लयूसी के मुताबिक ई-कॉमर्स कंपनियों की वैल्यू में बेतहाशा वृद्धि हुई है। ऐसे में निवेशकों की तरफ से डिस्काउंट नीति खत्म करने और लाभ कमाने पर जोर देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। फ्लिपकार्ट के सीईओ ने हाल ही में कहा कि वह आने वाले 2 साल के अंदर अपनी कंपनी को प्रॉफिटेबल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 2007 में शुरू हुई फ्लिपकार्ट की वैल्यू हालांकि बाजार में तकरीबन 15 बिलियन डॉलर की है, लेकिन आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि यह कंपनी कभी भी प्रॉफिटेबल नहीं रही।

ग्राहकों की संख्या में हो रहा इजाफा
एक अच्छी खबर यह है कि ई-रिटेलर्स कंपनियों के ग्राहकों की संख्या में काफी इजाफा हो रहा है। ज्यादातर ग्राहक ऐसे हैं जिनको इस माध्यम की आदत पड़ गई है। ई-रिटेलर्स ऐसे ही ग्राहकों को अपना सामान मुनाफे वाली दर पर बेचना चाहते हैं। डिस्काउंट का फायदा इन कंपनियों को अब तक यही हुआ है कि इन डिस्काउंट्स के सहारे ये कंपनियां अपने लिए एक उपभोक्ता वर्ग बनाने में कामयाब हुई हैं। फ्लिपकार्ट के मुताबिक इसके पास तकरीबन 26 मिलियन रजिस्टर्ड उपभोक्ता हैं। कंपनी का दावा है कि हर रोज तकरीबन 8 मिलियन उपभेक्ता इसकी वेबसाइट पर हैं।

टैक्स संबंधी मसले
ई-कॉमर्स कंपनियों पर अब आयकर विभाग की नजर है। ऐसे राज्यों में जहां इन कंपनियों के फुलफिलमेंट केंद्र हैं वहां राजस्व विभाग इनको अपने घेरे में लाने के लिए इन पर नजर रख रहा है। कारण यह है कि भले ही ये ई-कॉमर्स कंपनियां इंटरनेट के माध्यम से अपना बिजनस चलाती हैं, फिर भी वे मार्कटप्लेस मॉडल के हिसाब से ही बिजनस कर रही हैं। राजस्व विभाग मांग की है कि इन कंपनियों को वैट के घेरे में लाया जाना चाहिए। इसके विरोध में इन कंपनियों का कहना है कि वे तो बस ग्राहक और विक्रेता के बीच पुल का काम करते हैं।

ब्रैंड वैल्यू में गिरावट का अंदेशा
डिस्काउंट की नीति का असर ब्रैंड की वैल्यू पर भी पड़ा है। इन कंपनियों द्वारा छूट की पेशकश करने पर जो ब्रैंड डिस्काउंट वाली सूची में शामिल होते हैं उनकी ब्रैंड वैल्यू पर असर पड़ता है।


buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top