पढ़ाई अधूरी छोड़ी, फिर भी 10 करोड़ का सफल कारोबारी | hindi success story

इंदौर. हुनर हो और करने की चाह हो तो कुछ भी किया जा सकता है। इसमें पैसे और डिग्री भी आड़े नहीं आती है। शहर के युवा अमोल वैद्य और नरेंद्र सेन की सफलता लोगों को यही सीख दे रही है। अमोल ने चार साल पहले गैरेज को किराए पर लेकर कंपनी प्रोडक्ट डिजाइन और सॉफ्टवेयर कंसल्टेंसी का काम शुरू करते हुए अपनी 47 बिलियन कंपनी की शुरुआत की थी।

आज कंपनी के दफ्तर इंदौर के साथ ही बेंगलुरू और कैलिफोर्निया में भी खुल गए हैं। कंपनी सालाना दस करोड़ का कारोबार कर रही है। मनोरमागंज में रहने वाले नरेंद्र सेन ने एक फोटो कॉपी मशीन पर काम करते हुए नौकरी शुरू की थी, सायबर कैफे चलाने वाले से एक कम्प्यूटर उधार लिया और ऑनलाइन एडवरटाइजिंग के लिए कंपनी ई-मैक्स बनाई।

अमोल की कहानी
साल 1994-95 में मैं बीएससी फाइनल में मैथ्स का पेपर दे रहा था। आगे वाले से केलकुलेटर मांगा, उसमें कुछ लिखा था, टीचर ने मेरा चीटिंग का केस बना दिया। इससे मैं टूट गया और ग्रेजुशन ही छोड़ दी। मैंने मल्टीमीडिया में डिप्लोमा किया और फिर जयपुर में इसका सेंटर खोल लिया।

साल 2003 में इंदौर वापस आ गया और एक कंपनी में चार हजार रुपए प्रति माह की नौकरी कर ली, लेकिन कुछ करने की चाह थी और लग रहा था अपनी योग्यता का उपयोग मैं अपनी कंपनी में बेहतर कर सकता हूं। साल 2011 में जेब में रखी कुछ हजार रुपए की जमा-पूंजी से मैंने ग्रेटर वैशाली में एक गैरेज किराए पर लिया और 47 बिलियन कंपनी बनााई। मैंने हॉटमेल बनाने वाले साबिर भाटिया के साथ भी काम किया है, उनके लिए भी हमारी कंपनी प्रोडक्ट बना रही है।

नरेंद्र की कहानी
मैं गांव से वर्ष 1998 में आया था, फोटोकॉपी की दुकान पर काम शुरू किया था। मैंने बीकॉम फर्स्ट ईयर के बाद पढ़ाई छोड़ दी। साथ ही सायबर कैफे जाने लगा, यहां कुछ लोग वेब डिजाइन करने वाले आते थे, उनसे मुलाकात हुई तो इसमें रुचि बढ़ने लगी। इसके बाद इसी में डूब गया और कम्प्यूटर पर इसे सीखने लगा। बाद में सायबर कैफे संचालक की मदद से एक कम्प्यूटर लिया और ऑनलाइन एडवरटाइजिंग का काम शुरू किया और ई-मैक्स ग्लोबल कंपनी बनाई। कंपनी के कामकाज ने गति पकड़ी तो डाटा सेंटर में काम शुरू करते हुए एक और कंपनी रैक बैक डाटा सेंटर बना ली। दोनों कंपनियों का कुल टर्नओवर ढाई करोड़ रुपए सालाना से अधिक हो गया है।

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