थायरॉयड से बचने के लिए क्या खाएं क्या ना खाएं

बिगड़ते लाइफस्टाइल और खान-पान के कारण थायरॉइड की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कई गुना अधिक होती है। यह मेटाबॉलिज्म/चयापचय से जुड़ी बीमारी है। सिर्फ भारत में चार करोड़ से अधिक थायरॉइड के मरीज हैं। आइए जानते हैं क्या है थायरॉइड, इसके कारण, थायरॉइय में कौन-से फूड्स खाने चाहिए और कौन-से नहीं खाने चाहिए।
क्या खाएं

आयोडीन 
थायरॉइड की प्रॉब्लम में आयोडीन की भूमिका सबसे ज्यादा जरूरी है। यह थायरॉइड के सही फंक्शन के लिए जरूरी है। ऑटोइम्यून कारणों से उत्पन्न होने वाली थायरॉइड की समस्या को छोड़कर बाकी सभी रोगियों में आयोडीन की कमी इसकी मुख्य वजह है। हालांकि, आयोडाइज्ड नमक एवं प्रोसेस्ड फूड के कारण आयोडीन की कमी से उत्पन्न होने वाली इस समस्या को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।

विटामिन डी
ऑटोइम्यून समस्या के कारण कम थायरोक्सिन बनना (हाशिमोटोडीजिज) एवं अधिक थायरोक्सिन बनना (ग्रेव्स डिजीज) दोनों ही स्थितियों में विटामिन-डी का पर्याप्त मात्रा में सेवन जरूरी होता है। इसके लिए विटामिन डी की मात्रा वाली मछली, अंडे, दूध एवं मशरूम का सेवन फायदेमंद होता है।

सेलेनियम
थायरॉइड ग्रंथि में सेलेनियम उचित मात्रा में पाया जाता है। इसे थायरॉइड-सुपर-न्यूट्रिएंट भी कहा जाता है, जो थायरॉइड से संबंधित ज्यादातर एंजाइम्स के लिए जरूरी होता है। इससे थायरॉइड ग्लैंड सही तरीके से काम करता है। सेलेनियम एक ऐसा जरूरी तत्व है जिससे बॉडी की इम्यूनिटी और फर्टिलिटी पर असर पड़ता है। इसलिए खाने में पर्याप्त सेलेनियम थायरॉइड ग्रंथि के सही तरीके से काम करने के लिए बहुत ही आवश्यक है। यह अखरोट, बादाम जैसे सूखे मेवों में पाया जाता है।

क्या नहीं खाएं
1. थायरॉइड से सम्बंधित समस्याओं के लिए सोया एवं इससे बने अन्य पदार्थों को खाने से बचें। आधुनिक रिसर्च के अनुसार भी लगभग एक तिहाई बच्चे जो ऑटोइम्यून थायरॉइड से संबंधित समस्याओं से पीड़ित होते हैं, उनमें सोया-मिल्क या इससे बने अन्य पदार्थ एक बड़ा कारण होता है। सोयाबीन हाइड्रोजेनेटेड फैट्स एवं पोलिअनसैचुरेटेड ऑयल का सबसे बड़ा स्रोत है।
2. फूलगोभी, ब्रोकली और पत्ता गोभी में गूट्रोजन पाया जाता है जिससे थायरॉइड हार्मोन्स के प्रोडक्शन पर उल्टा प्रभाव पड़ता है।

ध्यान देने योग्य बातें
1. थायरॉइड की दवा लेते समय यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि कोई फ़ूड सप्लीमेंट जैसे कैल्शियम आदि न लें और बहुत ज्यादा जरूरी हो तो इनके बीच का अंतराल कम-से-कम चार घंटे का जरूर होना चाहिए।
2. डायबिटीज के रोगियों में शुगर कंट्रोल करने के लिए दी जा रही दवा Chromium picolinate थायरॉइड की दवा पर असर डालती है, इसलिए दोनों को लेने के बीच कम-से-कम तीन से चार घंटे का अंतर अवश्य ही होना चाहिए। फ्लेवोनॉइड्स युक्त सब्जियां और चाय हार्ट फंक्शन को सही रखते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में लेने पर थायरॉइड के कार्य करने की क्षमता को घटा देते हैं। इसलिए इनका सेवन नियंत्रित मात्रा में ही किया जाना चाहिए।
3. सही एक्सरसाइज हाइपो-थायरॉइडिज्म एवं हायपर-थायरॉइडिज्म दोनों में ही जरूरी माना गया है। इससे वजन बढऩे, थकान जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है।
4. थायरॉइड के रोगियों के लिए धूम्रपान करना बहुत ही खतरनाक है, खासकर सिगरेट के धुएं में पाए जाने वाला थायोसायनेट थायरॉइड ग्लैंड को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।
5. फ्लोराइड एक ऐसा नाम जिससे आप सभी परिचित होंगे, हायपर-थायरॉइडिज्म यानी थायरॉइड की अतिसक्रियता की स्थिति में इसका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है जो प्रभावी ढंग से थायरॉइड को अंडरएक्टिव बना देता है। आधुनिक फ्लोरिनेटेड संसार में जहां पानी, माउथवॉश से लेकर टूथपेस्ट तक सब कुछ फ्लोरिनेटेड है के प्रयोग में विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

थायरॉइड क्या है?
थायरॉइड शरीर का एक प्रमुख एंडोक्राइन ग्लैंड है जो गले में होता है। इसमें से थायरॉइड हार्मोन निकलता है जो हमारे मेटाबॉलिज्म को बैलेंस करता है।
थायरॉइड हार्मोन के कम या ज्यादा निकलने से अनेक प्रकार की शारीरिक परेशानियां होने लगती हैं। महिलाओं को थायरॉइड की बीमारी व परेशानी पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा होती है। थायरॉइड दो प्रकार का होता है, पहला हाइपोथायरॉइड और दूसरा हायपरथायरॉइड।

हाइपोथायरॉइड 
इस बीमारी में थायरॉइड ग्लैंड सक्रिय नहीं होता जिससे शरीर में आवश्यकता के अनुसार टी.थ्री व टी. फोर हार्मोन नहीं पहुंच पाता है।

लक्षण-
इस बीमारी की स्थिति में वजन अचानक बढ़ने लगता है। किसी काम में मन नहीं लगता। ठंड लगती है। कब्ज के साथ ही आंखें भी सूज जाती हैं। मासिक चक्र अनियमित हो जाता है। त्वचा सूखी व बाल बेजान होकर झड़ने लगते हैं। सुस्ती महसूस होती है। पैरों में सूजन व ऐंठन की शिकायत होती है। इनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। रोगी तनाव व अवसाद से घिर जाते हैं और बात-बात में भावुक हो जाते हैं। जोड़ों में पानी भर जाता है जिससे दर्द होता है और चलने में दिक्कत होती है। मांसपेशियों में भी पानी भर जाता है जिससे चलते-फिरते हल्का दर्द पूरे शरीर में महसूस होता है। चेहरा सूज जाता है। आवाज़ रूखी व भारी हो जाती है। यह रोग 30 से 60 वर्ष की महिलाओं को ज्यादा होता है।

हायपरथायरॉइड 
इसमें थायरॉइड ग्लैंड बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है और टी थ्री, टी फोर हार्मोन अधिक मात्रा में निकलकर रक्त में घुलनशील हो जाता है।

लक्षण-
इस बीमारी की स्थिति में वजन अचानक कम हो जाता है। पसीना ज्यादा आता है। गर्मी सहन नहीं कर पाते। भूख बढ़ जाती है। इंसान दुबला नजर आता है। मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। हाथ कांपते हैं। धड़कन बढ़ जाती है। दस्त होता है। प्रजनन प्रभावित होता है। मासिक रक्तस्राव ज्यादा एवं अनियमित हो जाता है। गर्भपात के मामले सामने आते हैं। हायपर थायरॉइड बीस साल की महिलाओं को ज्यादा होता है।

 thyroid facts , how to control  thyroid 

buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top