डॉक्टरों ने जुगाड़ टेक्नोलॉजी से बचाई मासूम की जान

जमशेदपुर। हमारे देश में जुगाड़ टेक्नोलॉजी कोई नई बात नही, कई बार छोटे-छोटे जुगाड़ के जरिए इतने बड़े-बड़े काम कर दिए जाते हैं जिसे देखे हैरानी होती है. महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के शिशु रोग विभाग के डॉक्टर्स ने भी ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है।

बुधवार को विभाग में मौत से जूझ रहे सीवियर बर्थ एस्फेक्सिया से पीडि़त एक नवजात को लाया गया. हॉस्पिटल में उसके इलाज के लिए जरूरी सी-पैप मशीन नहीं था लेकिन डॉक्टर्स ने मशीन नहीं होने पर भी हिम्मत नहीं हारी और जुगाड़ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर मात्र 90 रुपए में डिवाइस तैयार कर शिशु की जान बचाई।

पेश की मिसाल
एमजीएम हॉस्पिटल के शिशु रोग विभाग के डॉक्टर्स ने ना सिर्फ कड़ी मेहनत कर एक मासूम की जान बचाई साथ ही यह भी संदेश दिया कि अगर किसी कार्य को करने की इच्छाशक्ति हो तो संसाधनों की कमी आड़े नहीं आती. हॉस्पिटल के शिशु रोग विभाग में बुधवार की सुबह करीब साढ़े नौ बजे एक न्यू बोर्न बेबी लाया गया. डॉक्टर्स ने बताया कि मासूम को जब उनके पास लाया गया उस वक्त उसकी सांस नहीं चल रही थी और धड़कन भी नहीं था. बच्चे की गंभीर हालत देख फौरन डॉ अजय राज के नेतृत्व में जूनियर डॉ मनीष कुमार भारती और डॉ रवि ने इलाज शुरू किया. डॉ अजय राज ने बताया कि बच्चे को सीवियर बर्थ एस्फेक्सिया बीमारी थी. शिशु ने गर्भ में मौजूद लिक्विड (मेकोनियम) पी लिया था. यह लिक्विड शिशु की छाती में चला गया था. इस वजह से उसका रेस्पिरेशन और हार्ट बंद हो गया था. उन्होंने बताया कि शिशु सही तरीके से सांस ले सके इसके कंटीन्यूअस पॉजीटिव एयरवे प्रेशर (सी-पैप) ट्रीटमेंट जरूरी था, लेकिन हॉस्पिटल में सी-पैप मशीन नहीं था।

हिम्मत नहीं हारी
डॉक्टर्स ने हिम्मत नहीं हारी और जुगाड़ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर मात्र 90 रुपए में सी-पैप मशीन की तरह काम करने वाला डिवाइस तैयार कर लिया. डॉ मनीष ने बताया कि इस आर्टिफिशियल बबल सी-पैप को बनाने के लिए म्0 रुपए के पीडिया ड्रिप और फ्0 रुपए के थ्री वे कैन्यूला का इस्तेमाल किया गया. इन दोनों डिवाइसेज को ऑक्सीजन सिलेंडर से जोड़कर पूरा डिवाइस तैयार किया गया.

काम आई तकनीक
सी-पैप का इस्तेमाल ब्रीदिंग प्रॉब्लम होने या प्रीटर्म चिल्ड्रन जिनके लंग्स पूरी तरह से डेवलप ना हुआ हो उनके इलाज के लिए किया जाता है. इसमें माइल्ड एयर प्रेशर का इस्तेमाल एयरवे ओपन रखने के लिए किया जाता है. एमजीएम के डॉक्टर्स द्वारा तैयार किए गए डिवाइस ने भी कुछ ऐसा ही काम किया. डॉ अजय राज ने बताया कि इलाज के बाद शिशु की स्थिति में सुधार हो रहा है.

डिवाइस ने कुछ ऐसे किया काम
डॉ रवि ने बताया कि थ्री वे कैन्यूला के एक सिरे से ऑक्सीजन सप्लाई दी गई, जबकि दूसरे सिरे को पीडिया ड्रीप से जोड़ा गया. आक्सीजन को थ्री वे कैन्युला के तीसरे सिरे से शिशु की नाक में पहुंचाया गया. सांस लेने के बाद जब शिशु ने सांस छोड़ा तो हवा थ्री वे कैन्युला में आकर पीडिया ड्रीप में पहुंची. इससे सांस के साथ आए गैसेज अलग हो ही गए साथ ही पीडिया ड्रीप में निश्चित मात्रा में मौजूद पानी की वजह से बने प्रेशर से एयरवे ओपन रखने में मदद मिली.

शिशु जब हमारे पास लाया गया उसकी हालत बेहद गंभीर थी. उसकी सांस नहीं चल रही थी साथ ही धड़कन भी बंद थी. शिशु के इलाज के लिए सी-पैप मशीन उपलब्ध नहीं था. इसे देखते हुए अपनी सूझ-बूझ का इस्तेमाल कर एक डिवाइस तैयार कर शिशु की जान बचाई गई.
डॉ अजय राज, शिशु रोग विभाग, एमजीएम हॉस्पिटल

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