कभी इस शख्स को ढाई सौ रुपए थमाकर नौकरी से निकाल दिया गया था। इसके हौंसले और लगन की दाद देनी होगी कि उसी ढाई सौ रुपए से इस शख्स ने तीन हजार करोड़ रुपए का विशाल कारोबार खड़ा कर लिया।
बात हो रही है एशिया पैसेफिक में मैनपॉवर सेक्टर की सिरमौर कही जाने वाली सिक्योरिटी एंड इंटेलीजैंस सर्विस (SIS) के चेयरमैन रविंद्र किशोर सिन्हा की। मूल रूप से बिहार के रहने वाले सिन्हा ने कभी किराए के छोटे गैराज में दफ्तर खोला था, आज इस शख्स की कंपनी में 70,000 कर्मचारी काम कर रहे हैं और कंपनी का टर्नओवर 350 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा हो चुका है।
SIS इस समय टाटा स्टील टाटा मोटर्स आईसीआईसीआई बैंक, फ्यूचर ग्रुप और आइडिया सेलुलर जैसी कंपनियों को मैनपावर उपलब्ध करा रही है।
इस तरक्की के पीछे सिन्हा की किस्मत ही नहीं बल्कि विजन, दूरंदेशी के साथ साथ उनकी मेहनत का बड़ा योगदान है। आज SIS ग्रुप की प्रतिष्ठा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि SIS ग्रुप एशिया की सबसे बड़ी मैनपॉवर कंपनी है। दुनिया भर की 300
कारपोरेट कंपनियां इसकी कस्टमर हैं और कुछ साल पहले इस ग्रुप ने ऑस्ट्रेलियाई सिक्योरिटी कंपनी क्यूब को टेकओवर कर लिया था।
नौकरी से निकाला तो गैराज में खोला ऑफिस
घर की गरीबी दूर करने के लिए सात भाई बहनों में से एक रविंद्र ने 1971 में राजनीति विज्ञान की पढ़ाई के साथ साथ कुछ वक्त ‘सर्चलाइट’ नाम के अखबार में पत्रकार के रूप में नौकरी भी की। उस वक्त उन्हें सवा सौ रुपए महीने के मिला करते थे। इसी दौरान रविंद्र ने कुछ वक्त बिहार रेजिमेंट के साथ बार्डर पर भी गुजारा। सैनिकों के साथ वक्त गुजारना ही रविंद्र के लिए चमत्कारी साबित हुआ। सैनिकों ने रविंद्र को सिक्योरिटी एजेंसी खोलन की सलाह दी ताकि रिटायर हो चुके सैनिक अपनी आजीविका चला सके।
कुछ ही समय बाद किसी वजह से कंपनी ने रविंद्र को नौकरी से निकाल दिया और बदले में दो माह की सैलरी के रूप में ढाई सौ रुपए हाथ में थमा दिए। अब रविंद्र फिर से बेरोजगार था। उसने सैनिकों की सलाह पर काम करते हुए उसी ढाई सौ रुपए से पटना में एक छोटा सा गैराज किराए पर लिया और SIS नाम से कंपनी खोल ली। पहले पहल कंपनी में वो सैनिक आए जो भारत पाकिस्तान का युद्ध लड़ चुके थे और अब पेंशन पर जी रहे थे। पहली बार रविंद्र ने एक सैनिक को अपने दोस्त के दफ्तर पर सिक्योरिटी गार्ड के रूप में लगाया और 400 रुपए का कमीशन लिया। ये इस कारोबार की पहली कमाई थी।
पहले साल में रविंद्र की कंपनी ने कम से कम ढाई सौ लोगों को बतौर सिक्योरिटी गार्ड कंपनियों को दिया। उस साल SIS ने एक लाख रुपए का फायदा पाया और सिलसिला चल पड़ा। रविंद्र अपने कर्मचारियों से बहुत अच्छे से बातचीत करता था और यही कर्मचारी बाहर जाकर रविंद्र की तारीफ करते और रविंद्र का प्रचार हो जाता।
कारोबारी सोच ने बदल दी किस्मत
1988 में रविंद्र ने कारोबार बढ़ाने की सोची और ग्रेजुएट और दसवीं पास सैनिकों को हाई क्लास सिक्योरिटी गार्ड के रूप में ट्रेंड करने वाली एकेडमी खोली। इस कंपनी ने एक साल में दो लाख सिपाहियों और 15 हजार ग्रेजुएट लड़कों को ट्रेंड किया। इसी के साथ रविंद्र का बिजनेस चल पड़ा और रविंद्र ने इसी साल तीन और कंपनियां खोल ली। 2005 तक रविंद्र के मैनपावर बिजनेस का टर्नओवर 25 करोड़ पार कर गया।
2008 में रविंद्र की कंपनी ने देश के बाहर भी कंपनियां स्थापित की। इसी साल आस्ट्रेलियाई कंपनी क्यूब का 100 करोड़ रुपए में अधिग्रहण कर लिया। आस्ट्रेलिया की की अधिकतर कॉरपोरेट कंपनियों का SIS से करार है।
2011 में SIS ने अमेरिका की सबसे बड़ी पेस्ट कंट्रोल प्रोवाइडर कंपनी ‘टरमिनिक्स’ के साथ साझेदारी की। इसी के सहयोग से SIS इस समय भारत में भी पेस्ट कंट्रोल प्रोवाइडिंग के बिजनेस में आगे बढ़ रही है। SIS इस समय देश में केश सर्विस एटीएम में कैश पहंचाने का काम, कीमती चीजों का ट्रांजेक्शन जैसे काम भी कर रही है।