यूं तो देश में आरक्षण कोई नया विषय नहीं है, लेकिन जब ब्राम्हणों को आरक्षण मिले तो आग लग जाती है। बेंगलुरु में इन दिनों यही हो रहा है। यहां एक ओपन बैडमिंटन टूर्नामेंट 2015 सिर्फ ब्राह्मणों के लिए आरक्षित कर दिया गया है। इसे लेकर शेष समाजों के लोग हाय तौबा मचा रहे हैं। दूसरी जाति को आरक्षण का समर्थन करने वालों को दुनिया की सारी नैतिकताएं और नीति नियम याद आ रहे हैं।
बेंगलुरु में दैवज्ञ ब्राह्मणों की एक संस्था दैवज्ञ फाउंडेशन का 20-21 जून को प्रस्तावित 'ओपन बैडमिंटन टूर्नामेंट 2015' शुरू होने से पहले ही विवादों में आ गया है. इस टूर्नामेंट में सिर्फ दैवज्ञ ब्राह्मणों को ही खेलने की अनुमति होने के चलते इस पर सोशल मीडिया पर विवाद खड़ा हो गया है.
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, इस विवाद पर टूर्नामेंट के आयोजकों का कहना है कि हमने ये टूर्नामेंट एक सामुदायिक मेल-मिलाप की कोशिशों के अंतर्गत आयोजित किया है. और इसके जरिए हम अपने समुदाय के युवकों को खेल के प्रति ज्यादा गंभीर करना चाहते हैं.
टूर्नामेंट का आयोजन करने वाली दैवज्ञ फाउंडेशन के अध्यक्ष श्रीनिवास कुडतरकर का कहना है कि 'हमारा लक्ष्य सबसे महान या अलग दिखना नहीं है बल्कि हम इस टूर्नामेंट के जरिए अपने समुदाय के युवाओं के अंदर छुपे टैलेंट को खोजने के साथ ही युवा बैडमिंटन खिलाड़ियों की मदद भी करना चाहते हैं.'
श्रीनिवास के मुताबिक कर्नाटक के तटीय इलाकों के साथ ही महाराष्ट्र और गोवा के दैवज्ञ ब्राह्मणों ने भी इस प्रतियोगिता में रुचि दिखाई है. सूत्रों के मुताबिक इस पूरे मामले पर कर्नाटक बैडमिंटन एसोसिएशन का कहना है कि अगर यह एक सामुदायिक आयोजन है तो हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है और इसके आयोजक इसके नियम और शर्तें तय करने को स्वतंत्र हैं.
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