योगिनी एकादशी 12 जून के दिन है। इस व्रत के संदर्भ में एक बहुत ही रोचक कथा है। इसके अनुसार अलकापुरी के राजा कुबेर शिव भक्त थे। उनका एक हेम नामक सेवक था।
हेम उनके बागों की देखभाल करता था। हर सुबह का उसका काम था कि वह मानसरोवर से राजा की शिव-पूजा के लिए फूल चुनकर लाए। उसकी एक खूबसूरत पत्नी थी, जिसका नाम था स्वरूपवती। वह अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था और उसके प्रति बहुत आकर्षित था।
एक दिन वह मानसरोवर से फूल तो तोड़ लाया, लेकिन घर आकर वह पत्नी में रम गया और राजा की पूजा में फूल पहुंचाने नहीं गया। जब समय पर फूल नहीं पहुंचे, तो राजा ने अपने सेवक को हेम माली के घर यह देखने के लिए भेजा कि वह फूल लेकर क्यों नहीं आया।
सेवक ने जाकर राजा को बताया कि हेम घर पर अपनी पत्नी के साथ है। जब बाद में हेम को फूलों की याद आई, तो वह फूल लेकर राजा के पास गया। राजा पहले से ही क्रुद्ध थे, इसलिए उन्होंने हेम को सफेद कुष्ठ रोगी होने और मृत्युलोक में भटकने का शाप दे दिया ।
हेम जंगल में रहने लगा। वहां न उसके खाने के लिए कुछ मिलता, न पीने के लिए और पीड़ा की वजह से वह सो भी नहीं पाता था। इस सबके बावजूद उसने शिव आराधना करना नहीं छोड़ी।
इधर-उधऱ भटकते हुए ही हेम माली हिमालय पर पहुंच गया। वहां वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम पहुंचा। जब वह आश्रम पहुंचा, तो ऋषि ध्यान में थे। उन्हें देखकर उसे लगा जैसे वह ब्रह्मा के समक्ष आ खड़ा हुआ है। अपने अपने अपराध बोध से ग्रस्त हेम उनके करीब न जाकर कुछ दूर ही खड़ा हो गया और प्रार्थना करने लगा।
मार्कण्डेयजी ने हेम से पूछा, 'ऐसा क्या पाप हुआ था तुमसे, जो तुम इतना भयानक दंड पा रहे हो?' हेम ने ऋषि के प्रश्न का पूरी ईमानदारी से उत्तर दिया। बताया कि 'मैं अपने कर्त्तव्य को भूलकर पत्नी में रमा रहा। जब मेरे राजा को पता चला तो उन्होंने मुझे श्राप दिया, जिससे मेरी यह दशा हुई है।
तब से मैं ऐसे ही घूम रहा हूं। पर किस्मत से मैं आप तक पहुंच गया। मुझे आशा है कि मुझे आपसे आशीर्वाद मिलेगा क्योंकि मैं जानता हूं कि आप जैसे भक्त ऋषि के मन में दूसरों के लिए करुणा हुआ करती है। कृपया आप मेरी मदद करें।'
इस पर मार्कण्डेय ऋषि ने कहा, 'क्योंकि तुमने अपना अपराध ईमानदारी से मेरे सामने मान लिया है, तो मैं तुम्हें इस दशा से मुक्ति के लिए एक व्रत का विधान बताऊंगा जिससे तुम जरूर ठीक हो जाओगे। तुम आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करो। उस व्रत को करने से तुम इस श्राप से मुक्त हो जाओगे।'
हेम माली ने ऋषि के बताए अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रताप से वह फिर से खूबसूरत यक्ष में बदल गया और वह अपने घर अपनी पत्नी के पास लौट गया। कृष्ण ने कहा कि 'हे नरेश, तुम समझ ही गए हो कि योगिनी एकादशी का व्रत कितना फलदायी है। इस एकादशी का विधि-विधान से व्रत करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन करवाने जितना पुण्य मिलता है।'
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