नई दिल्ली| दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर मच्योर्ड महिला शादी के वादे के कारण शारीरिक संबंध बनाने की सहमति दे और लंबे समय तक वह महिला उस संबंध में लिप्त हो, तो वह गलतफहमी की शिकार नहीं मानी जाएगी। यह सहमति उसकी स्वच्छंदता के दायरे में होगी।
हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अभियोजन पक्ष इस बात का साक्ष्य नहीं दे पाया कि शादी का वादा कर संबंध बनाए गए और ऐसे में आरोपी को रेप के आरोप से बरी किया जाता है और उसे रिलीज करने का आदेश दिया जाता है। शिकायती महिला का आरोप था कि आरोपी ने उसके साथ शादी का वादा कर संबंध बनाए।
कोर्ट ने कहा कि महिला का पति नहीं था और वह तीन बच्चों की मां थी। उसने खुद अपनी मर्जी से संबंध बनाए। वह जानती थी कि उसके और आरोपी के बीच क्या हो रहा है और वह प्रत्येक ऐक्ट से वाकिफ थी। इस बात के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि महिला इस बात से अनभिज्ञ थी कि उनके बीच क्या हो रहा है। वह सहमति का नतीजा भी जानती थी। इस मामले में यह भी साबित नहीं हुआ कि दोनों ने वैलिड मैरिज की थी। शादी का वादा कर संबंध बनाए गए यह साबित नहीं होता है।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में अगर महिला के साथ आरोपी ने संबंध बनाए तो वह उसकी मर्जी से बनाए गए। जबरन संबंध बनाए जाने का कोई साक्ष्य नहीं है। इस मामले में महिला का बयान विश्वसनीय नहीं है।
अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि संबंध शादी के झूठे वादे के कारण बनाए गए थे। महिला 3 बच्चों की मां थी और आरोपी 22 साल का था। इस मामले में शादी के वादे का कोई साक्ष्य नहीं नजर आता। अदालत ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए आरोपी को बरी कर दिया और उसे रिहा करने का निर्देश दिया। निचली अदालत ने आरोपी को 7 साल कैद की सजा सुनाई थी, जिसे आरोपी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। यह मामला दिल्ली के तिमारपुर थाने का है।
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