नई दिल्ली। भारत वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूटीओ) में अमेरिका से पॉल्ट्री प्रोडक्ट की एक बड़ी लड़ाई हार गया है। इसका सीधा खामियाजा भारत के पॉल्ट्री उद्योग को भुगतना पड़ेगा। अब दुनिया के सबसे बड़े चिकन एक्सपोर्टर को भारत के रूप में बड़ा बाजार मिलने वाला है।
भले ही इससे लोगों की थाली में सस्ता अमेरिकी चिकन पहुंचेगा, लेकिन इससे भारतीय पॉल्ट्री इंडस्ट्री से जुड़े कारोबारी से लेकर किसान तक पर बुरा असर पड़ना तय है। आठ साल पहले लगे प्रतिबंध की वजह भले ही अब खत्म हो गई है, लेकिन आने वाले दिनों में उसकी आशंका जरूर बनी रहेगी।
क्यों लगाया था प्रतिबंध
साल 2007 में भारत ने बर्ड फ्लू की आशंका को देखते हुए अमेरिका से आने वाले पॉल्ट्री मीट और चिकन पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन गुरुवार को डब्ल्यूटीओ ने अपने आदेश में कहा है कि भारत द्वारा अमेरिका से आयात होने वाले पॉल्ट्री मीट, अंडे और जिंदा सुअर पर प्रतिबंध लगाना अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत असंगत है। भारत को अब इस आदेश को 12-18 माह के भीतर लागू करना होगा, इसके बाद अमेरिका इन उत्पादों का निर्यात भारत को शुरू कर सकेगा।
कीमतों में भारी गिरावट की आशंका
पॉल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष जगबीर सिंह ने कहा कि अगर अमेरिकी चिकन देश में आया तो भारतीय पॉल्ट्री उद्योग को गहरा झटका लगेगा और कीमतों में कमी आएगी। सिंह के मुताबिक अमेरिकी चिकन लेग्स की कीमत अमेरिका में करीब आधा डॉलर यानी भारत के हिसाब से 30-45 रुपए प्रति किलो है। ऐसे में अमेरिकी चिकन भारत में आने पर कीमतें 30-40 फीसदी फिसल सकती है, जिससे उद्योग की दिक्कत और बढ़ सकती है। 2012-13 के दौरान पोल्ट्री उद्योग की रफ्तार 20 फीसदी की दर से बढ़ी थी, लेकिन पिछले दो वर्षों से उद्योग की रफ्तार पर ब्रेक लग गया है और 7 फीसदी की दर से ही बढ़ा है।
अमृतसर स्थित गुरमीत सिंह पॉल्ट्री फार्म के प्रबंध निदेशक गुरमीत सिंह ने बताया कि पिछले साल चिकन लेग भारतीय बाजार में 180 रुपए प्रति किलो बिक रहा था। इसकी कीमत इन दिनों 250-270 रुपए प्रति किलो के आसपास है। अगर अमेरिकी चिकन बाजार में आता है तो कीमतें एक बार फिर से फिसल जाएंगी।
लागत निकालना हो जाएगा मुश्किल
पुणे स्थित सिद्धिविनायक ब्रीडिंग फार्म के को-ओनर अजय देशपांडे ने बताया कि एक चिकन पर औसत लागत 60-70 रुपए का आती है, जिसमें से करीब 80 फीसदी खर्च मक्का और सोयाबीन पर होता है। तीन साल पहले सोयाबीन की कीमत 30 फीसदी चढ़ गई थी, जिसके कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा था। हम अभी भी उन घाटों से उबरने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में सस्ता अमेरिकी चिकन भारतीय बाजार में आता है तो हमारी मुश्किलें और बढ़ जाएगी।
किसानों को सता रहा है डर
महाराष्ट्र की पोल्ट्री ब्रीडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वसंत कुमार ने कहा कि पोल्ट्री किसानों को डर है कि अगर घरेलू बाजार में अमेरिकी चिकन आता है तो उनका कारोबार खत्म हो जाएगा। पिछले साल अक्टूबर में जब वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूटीओ) ने अमेरिका के हक में फैसला सुनया था तो पूरे देश में इसका विरोध हुआ था।
देश में 37 लाख चिकन की खपत
भारत में ब्रॉयलर चिकन का खपत लगातार बढ़ रही है। ऐसा अनुमान है कि 2014 के दौरान इसकी मांग 37.2 लाख टन रही है, जो 2013 में 34.5 लाख टन थी।