
अलंकृता श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित और प्रकाश झा द्वारा प्रड्यूस की जा रही यह फिल्म भारत के छोटे से शहर की कहानी पर बेस्ड है, जो कोंकणा सेन शर्मा, रत्ना पाठक शाह, अहाना कुमरा, प्लाबिता बोरठाकुर के इर्द-गिर्द घूमती है, जो आज़ाद जीवन जीने की तमन्ना रखती हैं।
श्याम बेनेगल कमिटी ने बोर्ड को सर्टिफिकेशन के तरीके में बदलाव करने की सलाह दी थी, इसके बावजूद फिल्म को मुश्किलों को सामना करना पड़ा है। श्याम बेनेगल ने सीएनएन न्यूज़ 18 से हुई बातचीत में कहा, चूंकि उन्होंने फिल्म नहीं देखी है और उन्हें पता नहीं है कि यह फिल्म किस चीज को लेकर है, लेकिन इस तरह किसी भी फिल्म को सर्टिफिकेट देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा, 'एक कमिटी जिसे सरकार ने इसलिए सिर्फ तैयार किया है ताकि सर्टिफिकेशन के तरीके पर ध्यान दिया जाए। फिल्मों को वर्गीकृत किए जाने की जरूरत है, न कि सेंसर की। सेंसर करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। हम योग्यता और परिपक्वता के आधार पर क्लासिफिकेशन के बारे में बातें कर रहे हैं। इस बारे में कोई जानकारी नहीं कि इस बारे में जो सजेशन दिया गया है उसे लागू किया गया है या नहीं।' जो लोग इस फिल्म के बैन को लेकर हो हल्ला कर रहे है क्या वो अपनी बहिन या बेटी को ऐसी किसी फिल्म मे काम करने देंगे
फिल्म को सर्टिफाई नहीं किए जाने को लेकर दी गई वजहों में कहा गया है, 'यह कहानी महिला बेस्ड है, जिसमें सामान्य जीवन से कहीं बढ़कर, आगे की कल्पनाएं हैं। इसमें कई विवादास्पद सेक्शुअल सीन हैं, गालियों वाले शब्द हैं, ऑडियो पॉर्नोग्रफ़ी और सोसायटी के कुछ वैसे हिस्से को टच किया गया है जो काफी संवेदनशील है, इसलिए गाइडलाइन 1(a), 2(vii), 2(ix), 2(x), 2(xi), 2(xii) and 3(i) के तहत इसे रिफ्यूज़ किया जाता है।'
सेंसर बोर्ड (सीबीएफसी) के सदस्य अशोक पंडित ने कहा कि 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' को सेंसर करना बेकार है। उन्होंने कहा, 'मैं खुद हैरान हूं फिल्म के लिए बोर्ड के इन शब्दों के इस्तेमाल को देखकर। दुखद तो इस बात का है कि प्रकाश झा जैसे फिल्ममेकर, जिन्हें कई अवॉर्ड मिल चुके हैं उनके विवेक पर सवाल खड़ा किया गया है। इस फिल्म से किसी भी हालत में कोई दंगा पैदा नहीं हो सकता