
फिल्म के कारण इन दिनों चर्चा में चल रहीं पूर्णा ने बताया, “फिल्म बनने से पहले लोग मुझे जानते तक नहीं थे, लेकिन अब मुझे सब जानने लगे हैं. लोग मेरी इस उपलब्धि को सराह भी रहे हैं। मगर सच्चाई तो यही है कि अगर यह फिल्म नहीं बनती तो यकीनन मुझे लोग नहीं जान पाते.” तेलंगाना के एक छोटे से गांव पकाला में जन्मी पूर्णा ने गरीबी के साए में तमाम तरह की चुनौतियों को पार करते हुए देश को गौरवान्वित किया.
पूर्णा ने अपने इस मुश्किल सफर के बारे में बताया, “एक लड़की होना आसान नहीं है. हम पर तमाम तरह की बंदिशें लगी होती हैं और हमें हर बार यह याद दिलाया जाता है कि हम लड़कियां हैं. ऐसी स्थिति में आप कुछ कर दिखाने को लालायित रहते हैं. मैंने शुरू से ठान रखा था कि मुझे कुछ कर दिखाना है और दुनिया को यह बताना है कि लड़कियां कुछ भी कर सकती हैं.”
पूर्णा का बचपन गरीबी में कटा. माता-पिता किसान हैं, घर में किसी तरह की सुख-सुविधा का शुरू से ही अभाव रहा. वह कहती हैं, “हमारा समाज पूरी तरह से बंटा हुआ है. गरीब होना एक अभिशाप तो है ही, एक लड़की होना भी चुनौती ही है. मेरे इस सफर को आप फिल्म से जान पाएंगे कि इस तरह की जिंदगी जीना आसान नहीं होता.” पूर्णा की पढ़ाई-लिखाई गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई. एक दिन स्कूल में निरीक्षण के दौरान आईएएस अधिकारी प्रवीण कुमार, पूर्णा से खासे प्रभावित हुए और अपनी देखरेख में पर्वतारोहण प्रशिक्षण देने लगे