इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सहमति से तलाक के मामले में भी तलाक की डिक्री के खिलाफ अपील दाखिल की जा सकती है। यदि इस प्रकार के मामले में किसी एक पक्ष द्वारा दी गई सहमति को लेकर संदेह है तो परिवार न्यायालय की जिम्मेदारी है कि वह सहमति की जांच करे।
आगरा की पूजा की अपील स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति राजीव जोशी ने अपीलार्थी के पति को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(बी) के तहत सहमति से तलाक की डिक्री के खिलाफ सामान्यत: अपील नहीं दाखिल की जा सकती है, मगर जब इसमें सहमति को लेकर ही विवाद हो, यह संदेह पैदा हो जाए कि सहमति स्वेच्छा से नहीं दी गई तो चीजें बदल जाती हैं।यह ऐसे मामले की सुनवाई कर रहे न्यायालय की जिम्मेदारी है कि तलाक की डिक्री देने से पूर्व इस बात की जांच करे कि सहमति स्वेच्छा से बिना किसी दबाव के दी गई है। न्यायालय को अपने संतुष्ट होने का कारण रिकार्ड करना चाहिए। ताकि सहमति से तलाक देने के इस कानून का दुरुपयोग रोका जा सके।