मध्यप्रदेश में BJP अपना 38वा स्थापना दिवस बड़े धूम धाम से मना रही है पर इस जश्न के पीछे कई दिग्गज सिपेहसालार लम्बे समय से हो रहिओ उपेक्षा से इन दिनों नाराज चल रहे है । यहां सरकार बाबाओं को तो मंत्री दर्जे से नवाज रही है लेकिन मंत्री पद के असली दावेदार लंबे समय से उपेक्षित हैं। ऐसे विधायक अब खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। पिछले 15 सालों से पार्टी का झंडा उठा रहे कार्यकर्ता और संगठन के नेताओं के बीच खलबली मची हुई हैं।
उपेक्षा का आलम ये है कि प्रदेश का मालवा-निमाड़ और विन्ध्य क्षेत्र का कैबिनेट में प्रतिनिधित्व न के बराबर है। इन क्षेत्रों में कार्यकर्ता से लेकर विधायक तक न सिर्फ खफा हैं बल्कि कह रहे हैं कि क्या उनकी भूमिका सिर्फ जिंदाबाद के नारे लगाने या भीड़ जुटाने तक सीमित है। शिवराज कैबिनेट में भौगोलिक संतुलन देखा जाए तो 70 से ज्यादा विधायकों वाले मालवा-निमाड़ क्षेत्र को कैबिनेट में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय द्वारा कैबिनेट से इस्तीफा देने के बाद से इंदौर जैसे बड़े शहर से कोई मंत्री नहीं है।भाजपा सरकार में विन्ध्य लंबे समय से उपेक्षित है। पूरे इलाके से सिर्फ राजेंद्र शुक्ल ही एकमात्र मंत्री हैं। शहडोल से सांसद बने ज्ञानसिंह ने मंत्री पद छोड़ा तो उसकी भरपाई भी नहीं हो पाई। हर्ष सिंह मंत्री तो हैं पर बिना विभाग के। वहीं मंत्री पद के दावेदारों में केदार शुक्ला, रामलाल रौतेल को मंत्री बनाए जाने की चर्चा कैबिनेट विस्तार के समय होती है लेकिन परिणाम शून्य रहता है।महाकोशल को भी सरकार में प्रतिनिधित्व भाजपा विधायकों को संख्या की दृष्टि से कम है। कांग्रेस से आए संजय पाठक को जब से मंत्री बनाया गया तब से यहां के विधायकों में असंतोष और बढ़ गया है। अंचल सोनकर, मोती कश्यप की कैबिनेट में दावेदारी सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित रही ।प्रदेश के रायसेन जिले से एक नहीं तीन-तीन रामपाल सिंह, डा गौरीशंकर शेजवार और सुरेंद्र पटवा मंत्री हैं। ग्वालियर जिले से भी माया सिंह, जयभान सिंह पवैया और नारायण सिंह कुशवाह तीन मंत्री हैं। दूसरी तरफ 24 जिले ऐसे हैं जहां का कैबिनेट में प्रतिनिधित्व ही नहीं है। भोपाल से उमाश्कर गुप्ता और विश्वास सारंग दो मंत्री हैं।